ध्रुव: विज्ञानं और भगवान में सबसे बड़ा कौन है?
नंदिनी: सबसे पहले हमें ये समझना चाहिए की भगवान कौन है और विज्ञान क्या है?
👉 नयी-नयी खोज करना, शोध करना, प्रश्न पूछना, परिकल्पना करना, प्रयोग करना और निष्कर्ष निकालना ही विज्ञानं की परिभाषा है।
- वही "भगवान" पाँच शब्दों से मिलाकर बनता है-
- भ से भूमि
- ग से गगन (आकाश)
- व से वायु
- आ से अग्नि
- न से नीर (जल)
इसका मतलब यह है की भगवान कण-कण में है, और यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही भगवान् है।
विज्ञान प्रकृति के बिना अधूरा है, इसीलिए भगवान महान है।
ध्रुव: लेकिन विज्ञान तो भगवान को नहीं मानता।
नंदिनी: देखिये कभी कभी हमारा प्रश्न भी गलत हो जाता है चूँकि विज्ञानं कोई जिव नहीं है जो किसी को माने या नहीं माने, विज्ञानं एक खोज है जैसे:- ये क्या है, ये क्यों है, ये कैसे है? आदि। हाँ हमारा प्रश्न ऐसे हो सकता है की वैज्ञानिक भगवान को क्यों नहीं मानते?
और इसका जवाब ये हो सकता है -
की यह हमारे ज्ञान पर निर्भर करता है, क्युकी वैज्ञानिक अभी खोज करने में बहुत पीछे है, और जब तक आप अपनी खोज पूरी नहीं कर लेते तब तक ये निर्णय ले लेना की भगवान् नहीं है बिलकुल तर्कसंगत नहीं है।
उल्लू एक निशाचर पक्षी है जिसने कभी सूरज को देखा। उड़े लगता है सूरज नहीं है।
लेकिन सूरज तो आकाश में हमेशा मौजूद है। ठीक उसी तरह भगवान भी है, चाहे वैज्ञानिक उन्हें माने या न माने।
ध्रुव: लेकिन विज्ञानं ने हमें बहुत कुछ दिया है। जैसे:
रात में काम करने के लिए लाइट्स दी, गर्मी में राहत के लिए पंखे और ए. सी., दिए सर्दी के लिए हीटर दिए,
गंदे पानी को साफ़ करने के लिए वाटर फ़िल्टर और नयी-नयी बीमारी से बचाने के लिए वैक्सीन और दवाइयाँ दी,
दूर की यात्रा आसान बनाने के लिए वाहन दिए और घर बैठे अपनों से बात करने के लिए मोबाइल और इंटरनेट दिए।
नंदिनी: बिलकुल सही कहा आपने। विज्ञानं ने हमें बहुत कुछ दिया है।
लेकिन कहीं हम जरूरते पैदा तो नहीं कर रहे?
ध्रुव: मतलब?
नंदिनी:
- आप इंटरनेट पर सर्च करो "एलईडी लाइट के साइड इफेक्ट्स", इन लाइट्स के कारण हमारी आँखों में खिंचाव, सूखापन, सिरदर्द और नींद संबंधी समस्याएं हो सकती है। फिर हमें आई ड्राप की जरुरत पड़ती है।
- दुनिया में हर साल औसतन 15 अरब पेड़ काटे जाते हैं, जबकि सिर्फ 1.83 अरब पेड़ लगाए जाते हैं। दुनिया भर में अब तक लगभग २० करोड़ किलोमीटर की सड़क बना दी गयी है, फिर गर्मी तो बढ़ेगी ही और फिर जरुरत होगी पंखे और एसी की।
- हमने फैक्ट्री लगाई और गन्दा पानी नदियों में छोड़ दिया फिर जरुरत पड़ी वाटर फ़िल्टर की।
- बिना सुरक्षा के ऐसे एक्सपेरिमेंट किये जाते है जिनसे नई नई बीमारी उत्पन्न होती है। फिर जरुरत पड़ती है दवाई और वेक्सीन की।
ऐसे ही अगर हम हर पॉइंट पर बात करे तो हमें पता चलेगा की जरूरतें हमने बनायीं है।
ध्रुव: तो क्या हमें एक्सपेरिंनेट नहीं करने चाहिए थे?
नंदिनी: करने चाहिए ये ही तो हमें नई चीजे सिखाती है।
लेकिन कुछ बातो को ध्यान में रख कर जैसे:
- हमें एक्सपेरिमेंट करने चाहिए बिना किसी को नुक्सान पहुचाये।
- दूर यात्रा के लिए हमें वाहन चाहिए लेकिन अपने मजे और दिखावे के लिए तेज चलने वाली गाडी नहीं।
पता है ध्रुव वैज्ञानिको को धरती के गर्भ में हाइड्रोजन का विशाल भण्डार मिला है। और उनका मानना है की इस ऊर्जा से वो दुनिया को 200 साल तक बिजली प्रदान कर सकते है।
यह जानकार इंसान बहुत उत्साहित है, लेकिन क्या की ने ये सोचा है की जब हम धरती से यह ऊर्जा निकाल लेंगे, तो उसके बाद क्या होगा?
धरती के संतुलन पर जबरदस्त असर पड़ेगा। बड़े बड़े भूकंप आएंगे धरती फटेगी और भी बहुत कुछ।
- विज्ञानं ने पंखे दिए - यह ठीक था लेकिन एसी के कारण ओजोन परत नष्ट हो रही है।
- विज्ञानं से हमें मोबाइल और इंटरनेट मिला - लेकिन क्या किसी ने बताया की उनसे निकलने वाली रेडिएशन धीरे धीरे हमारी आयु काम कर रही है और हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को कम कर रही है, जी कारण हम बार बार बीमार हो जाते है।
ध्रुव: बात तो सही है, लेकिन विज्ञानं ने हमारे काम आसान कर दिए हैं।
आज हम सिर्फ एक स्विच को ऑन ऑफ करके रौशनी पंखे टीवी कुछ भी चला सकते है।
हमें मेहनत काम करनी पड़ती है, इसलिए मेरा मानना है की विज्ञानं महान है।
नंदिनी: हाँ, विज्ञानं ने हमारे सभी काम आसान कर दिए है।
लेकिन काम आसान होते होते इंसान आलसी बन गया है।
पहले इंसान 50km से ज्यादा की यात्रा पैदल कर लिया करता था और अब 1km चलने के लिए भी वह बाइक और कार का सहारा लेता है।
आज हम बिजली पर निर्भर है।
अगर बिजली चली जाये तो घर अँधेरे में डूब जाता है,
पानी की मोटर बंद हो जाती है,
आटा - चक्की नहीं चलपाती,
और इंटरनेट न हो तो हम लोग बैचेन हो जाते है।
इसका अर्थ तो ये है की विज्ञानं हमें धीरे धीरे गुलाम बनाते जा रहा है।
ध्रुव: लेकिन भगवान ने हमें क्या दिया है?
नंदिनी: भगवान ने इस प्रकृति का निर्माण किया।
यहाँ जन्म लेने वाले हर जिव को जीने की जगह दी,
उनके खाने के लिए अन्न, फल, और पीने के लिए पानी दिया।
हाँ, प्रकृति हमें बिना मेहनत कुछ नहीं देती।
बदले में वह हमसे प्यार और परिश्रम चाहती है।
वह हमें धैर्य सिखाती है और यह भी की
"बिना मेहनत के कुछ हासिल नहीं होता।"
ध्रुव: लेकिन विज्ञानं ने हमें चाँद और मंगल पर पंहुचा दिया।
क्या पता कल हम दूसरे गृह पर भी जीवन बसा दे।
नंदिनी: हाँ, लेकिन क्या यह अजीब नहीं की इंसान दूसरे ग्रह को खोज रहा है और अपनी पृथ्वी को नष्ट कर रहा है? जिस धरती ने जन्म दिया, उसी को खोखला कर रहा है।
क्या यह समझदारी है?
ध्रुव: तो क्या आपका अर्थ ये है की विज्ञानं पूरी तरह दोषी है?
नंदिनी: नहीं, विज्ञानं दोषी नहीं है। दोषी है इंसान का लालच और उसका असंतुलित उपयोग।
जैसे:
विज्ञान ने दवा बनाई ताकि बीमारी का इलाज हो सके, लेकिन आज इंसान वही दवा नशे में बदलकर बेच रहा है।
विज्ञान ने मशीन बनाई ताकि मेहनत काम करनी पड़े, लेकिन आज इन्ही मशीनों के कारण सभी जिव और प्रकृति खतरे में है।
विज्ञान ने हथियार बनाएं सुरक्षा के लिए, लेकिन आज उन्ही हथियारों का सहारा लेकर इंसान दूसरे की चीजे छिन्न रहा है।
इसका अर्थ ये है की असली समस्या विज्ञानं में नहीं, बल्कि इंसान के सोच में है।
ध्रुव: तो क्या हमें विज्ञान छोड़ देना चाहिए?
नंदिनी: नहीं। विज्ञानं बुरा नहीं है।
गलत उसका इस्तेमाल है।
विज्ञान एक चाकू की तरह है - जिससे फल भी काटे जा सकते है और किसी को चोट भी पहुंचाई जा सकती है। निर्णय इंसान के हाथ में है की उसका उपयोग कैसे करे।
ध्रुव: और भगवान?
नंदिनी: भगवान हमें संतुलन बनाना सिखाते है।
वे कहते है - "प्रकृति से उतना ही लो जितनी आवस्यकता हो। लोभी मत बनो।"
विज्ञान ने अगर दौड़ना सिखाया है तो भगवान ने हमें रास्ता दिखाया है।
दोनों मिलकर ही जीवन पूर्ण बनाते हैं।
ध्रुव: इसका अर्थ समस्या विज्ञानं और भगवान में नहीं, इंसान के लालच में है?
नंदिनी: बिलकुल।
विज्ञानं साधन, भगवान साध्य हैं।
विज्ञानं हमें भौतिक सुख देता है, और भगवान् हमें आत्मिक शान्ति देते है।
अगर हम दोनों का सही संतुलन बना लें तो यही जीवन की सबसे बड़ी सफलता होगी।
निष्कर्ष: विज्ञानं ने इंसान को सुविधाएँ दी, लेकिन भगवान् ने जीवन दिया है।
विज्ञानं हमें गति देता है, पर भगवान् हमें दिशा देते हैं।
दोनों की अपनी महत्ता है -
अगर विज्ञानं तर्क है तो भगवान आस्था हैं।
दोनों के संतुलन से ही जीवन सुन्दर बनता है।
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